जैविक खेती की परिभाषा ,लाभ, हानि और इसके बारे में विस्तृत जानकारी
शहरीकरण, कृषि का लघुकरण और औद्योगीकरण के साथ ही जनसंख्या में भी तेज़ी से वृद्धि होना एक विकराल समस्या बन गई है। कई बार खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए फसल उत्पादन को तेज़ी से बढ़ाना पड़ता है जिससे कुछ इस प्रकार के तौर तरीके अपनाने पड़ते हैं जिसमें रासायनिक खाद, रासायनिक कीटनाशक, और बहुत कुछ ऐसी दवाइयों का इस्तेमाल कर बैठते हैं जिससे फसल पूरी तरह से दूषित हो जाती है। जो हमारे भोजन और स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाते हैं। इस समस्या से बचने और मानव सभ्यता की रक्षा करने के लिए वर्तमान में जैविक खेती सबसे अच्छा माध्यम है। कई बार जैविक खेती के महत्व को समझाने के लिए विद्यार्थीयों को जैविक खेती पर निबंध लिखने को दिया जाता है इसलिए आपकी सहायता के लिए सैंपल निबंध दिया जाता है जो आपके लिए काफी कारगर साबित होगा।
निबंध की प्रस्तावना :-[जैविक खेती की परिभाषा ,लाभ, हानि और इसके बारे में विस्तृत जानकारी ]
जैविक खेती एक ऐसी विधि है जिसमें हवा, पानी और मिट्टी जैसे प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके फसलों को पोषणीय तरीके से उगाया जाता है। इसका मतलब यह नहीं है कि सभी मानव निर्मित रसायनों से बचा जाता है। वास्तव में, कुछ जैविक खेती के तरीकों में मानव निर्मित उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। लेकिन इन कीटनाशकों का उपयोग फसल के उत्पादन को बढ़ाने के बजाय मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने के लिए किया जाता है। रसायन मिट्टी में मिल जाते हैं और उसे उपजाऊ बनाने हैं। जैविक और अकार्बनिक खेती के बीच मुख्य अंतर यह है कि जैविक खेती में रसायन फसलों को प्रभावित किए बिना मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करते हैं। अकार्बनिक खेती में रसायन समय के साथ मिट्टी को नुकसान पहुँचाते हैं और हमारे भोजन में पहुँच जाते हैं, जिससे स्वास्थ्य को जोखिम होते हैं। कीटनाशकों में जिंक, लेड और मैंगनीज जैसे हानिकारक रसायन हमारे खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करने पर हमारे स्वास्थ्य के लिए बुरी तरह से बिगाड़ देते हैं।
जैविक खेती की परिभाषा :-
जैविक खेती के अन्तर्गत प्राकृतिक तरीकों, देशी खाद(पशुओं की खाद) और पेड़ पौधों की खाद का उपयोग करके फसलों को उगाना और साथ ही पशुओं को भी पालना जैविक खेती कहलाती है।
वर्तमान में जैविक खेती की स्थिति :-
जैसे कि आपको विदित है, जनसंख्या लगातार बढ़ रही है साथ ही साथ शहरीकरण भी बढ़ रहा है और कृषि जोत लगातार घटता जा रहा है जिससे किसान जमीन के छोटे से भाग पर कम समय में ज्यादा उत्पादन करना चाहता है इस चक्र में वो रासायनिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग करता है जिसके फलस्वरूप 2/4 साल तक अच्छी फसल हो जाती है लेकिन उसके बाद वो भूमि बंजर हो जाती है और रासायनिक खाद और कीटनाशकों के उपयोग से उत्पादित की गई फसल मनुष्य के लिए बेहद की हानिकारक होती है।
भारत में वर्तमान में जैविक खेती लगभग ना के बराबर की जाती है। भारत का सिक्किम ऐसा राज्य है जहां जैविक खेती की जाती है और उसे जैविक राज्य का दर्जा दिया जाता है। और राजस्थान में डूंगरपुर जिला जैविक खेती के रूप प्रसिद्ध है।
जैविक खेती पृथ्वी पर जीवन को सुरक्षित तरीके से बनाए रखने में प्रकृति का समर्थन करती है। जैविक खेती पूरी तरह से प्राकृतिक और सुरक्षित है, जो पौष्टिक फसलों का उत्पादन करते हुए मिट्टी की गुणवत्ता और ह्यूमन्स बनाए रखने में मदद करती है। जैविक खेती के माध्यम से उगाए गए फसलों का प्राकृतिक स्वाद बरकरार रहता है और यह अकार्बनिक खेती में अक्सर इस्तेमाल किए जाने वाले हानिकारक रसायनों से मुक्त होता है।
जैविक खेती सरल और सस्ती है, क्योंकि यह प्राकृतिक उपकरणों और तरीकों पर निर्भर करती है प्राकृतिक उर्वरकों का उपयोग करने से मिट्टी का उपजाऊपन अधिक रहता है और फसलें लंबे समय तक अच्छी और स्वस्थ रहती हैं। जैविक खेती में इस्तेमाल किए जाने वाले प्राकृतिक कीटनाशक फसलों को बिना नुकसान पहुँचाए कीटों को प्रभावी ढंग से नष्ट करते हैं।
जैविक खेती हमेशा से एक बेहतर जीवन और बेहतर स्वास्थ्य का विकल्प रहा है। यह प्राचीन कृषि पद्धतियों की परंपरा को जारी रखते हुए अनाज और मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखने में मदद करती है। वास्तव में जैविक खेती अकार्बनिक खेती की तुलना में अधिक उत्पादक उत्पादित करती है। जैविक तरीकों को चुनकर हम पर्यावरण की रक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देते हुए स्वस्थ, अधिक पौष्टिक भोजन सुनिश्चित करने में क्षसम हो सकते हैं।
जैविक खेती में जैविक पदार्थों से मिट्टी को पोषण देकर मिट्टी की उर्वरता को बेहतर बनाने के लिए खाद जैसे प्राकृतिक तत्वों का उपयोग किया जाता है। इसमें खाद, पौधों के बचे हुए हिस्से और खाद्य अपशिष्ट जैसी चीजें शामिल हैं। जैविक खेती को समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह इसके लाभों पर प्रकाश डालती है और पारंपरिक खेती के तरीकों के हानिकारक प्रभावों को उजागर करता है। जैविक खेती से आप अधिक रासायनिक पदार्थों का उपयोग किए बिना आसानी से फसल उगा सकते हैं।
जैविक खेती क्यों आवश्यक है ?
जैविक खेती कृषि की एक ऐसी पद्धति है जो फसलों को उगाने और पशुओं को पालने के लिए प्राकृतिक प्रक्रियाओं और सामग्रियों पर निर्भर करती है। इसमें कीटनाशकों, उर्वरकों और आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों जैसे सिंथेटिक रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता है, बल्कि मिट्टी के स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने के लिए खाद, गोबर और फसल चक्र का उपयोग किया जाता है। जैविक खेती इसलिए आवश्यक है क्योंकि यह टिकाऊ, सस्ती और लाभदायक के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है जैविक खेती मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखती है, प्रदूषण को कम करती है और जैव विविधता की भी रक्षा करती है। यह हानिकारक रसायनों से बचकर स्वस्थ फसल भी पैदा करती है और खेती के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करती है। जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय गिरावट का सामना कर रहे विश्व में जैविक खेती एक टिकाऊ और स्वस्थ विकल्प प्रदान करती है।
जैविक खाद :- जैविक खाद प्राकृतिक तरीके से पेड़ पौधों और पशुओं की खाद को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करती है। किसान फसलों के लिए खेत के कचरे, खली, वर्मीकम्पोस्ट जैसे अलग-अलग प्रकार के जैविक खाद का उपयोग करते हैं।
जैविक कीट प्रबंधन :- रासायनिक कीटनाशकों से बचने के लिए किसान जैविक खेती को जैविक तरीके से कीटों को नियंत्रित करते हैं इसमें नीम और तम्बाकू जैसे जैविक कीटनाशकों और बैसिलस थुरिंजिएंसिस जैसे विशिष्ट सूक्ष्मजीवों का उपयोग इत्यादि शामिल है। यह दृष्टिकोण मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखने और कीटों को प्राकृतिक रूप से नियंत्रित करने में मदद करता है।
गैर-रासायनिक खरपतवार नियंत्रण :- किसान रसायनों के बिना खरपतवारों को प्रबंधित करने के लिए यांत्रिक तरीकों, जैसे कि हाथ से निराई या औजारों का उपयोग करते हैं। खरपतवार नियंत्रण के लिए जैविक तरीकों को बढ़ावा देने से खरपतवारों की आबादी को प्राकृतिक रूप से कम करने में मदद मिलती है।
कृषि पद्धतियाँ :- फसल चक्र, मिश्रित फसल और हरी खाद जैसी तकनीकें मिट्टी के स्वास्थ्य को अच्छा बनाने में मदद करती हैं। इन पद्धतियों में फलीदार फसलों को शामिल करने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती और उस मिट्टी में फ़सलें भी अच्छी होती है।
स्वस्थ मिट्टी का रखरखाव :- सब्जियाँ उगाने, हरी खाद का उपयोग करने, फसलों को बदलने के माध्यम से मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखा जाता है। फसल चक्र का उपयोग करना चाहिए ताकि मिट्टी की उर्वरता बनी रहे।
जैविक खेती के सामने चुनौतियां :-
जैविक खेती करने में कई चुनौतियाँ होती हैं। इनमें आधुनिक तरीकों की तुलना में अधिक लागत और काम की तीव्रता कम होती है। रासायन के उपयोग से संक्रमण के कारण किसानों को शुरू में कम पैदावार जैसी समस्या का भी सामना करना पड़ सकता है। उनके लिए सिंथेटिक समाधानों के बिना कीट और खरपतवार नियंत्रण अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है। जैविक प्रमाणीकरण प्रक्रियाएँ जटिल और महंगी हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त, अक्सर जैविक इनपुट और बाज़ारों तक सीमित पहुँच होती है, जो लाभप्रदता को प्रभावित कर सकती है। जलवायु परिवर्तन और नए मौसम पैटर्न भी जैविक खेती के लिए जोखिम पैदा करते हैं और इन सभी चुनौतियों के बावजूद जैविक खेती मिट्टी के स्वास्थ्य, जैव विविधता और टिकाऊ कृषि के लिए दीर्घकालिक लाभ प्रदान करने में पूर्ण रूप से सक्षम है।
इसमें कीटनाशकों और उर्वरकों जैसे सिंथेटिक रसायनों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, बल्कि खाद, गोबर और अन्य जैविक इनपुट का इस्तेमाल किया जाता है।
जैविक खेती विभिन्न प्रकार के पौधों और जानवरों को प्रोत्साहित करके जैव विविधता का समर्थन करती है।
जैविक खेती पर्यावरण प्रदूषण को कम करने, पानी और मिट्टी को संरक्षित करने में भी मदद करती है।
जैविक खेती हानिकारक रसायनों से मुक्त भोजन का उत्पादन करती है, जिससे मानव का स्वास्थ्य स्वस्थ बना रहता है।
जैविक खेती में इस्तेमाल की जाने वाली विधियाँ जिसमें अधिक श्रम की खपत होती हैं और इससे शुरुआत में उत्पादन भी कम होता है।
इन चुनौतियों के बावजूद भी जैविक खेती को इसकी स्थिरता और पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव के लिए महत्व दिया जाता है।
सर्वप्रथम नॉर्थबोर्न (1896-1982) ने ही दुनिया को ‘जैविक खेती’ शब्द का तोहफा दिया। उनकी 1940 की किताब लुक टू द लैंड जैविक खेती से संबंधित है।
ऊपर बताई गई जैविक खेती की परिभाषा ,लाभ, हानि और इसके बारे में विस्तृत जानकारी आपको कैसी लगी हमें काॅमेंट बाक्स में जरूर बताएं।
धन्यवाद।