राष्ट्रपति के कार्य, शक्तियां, वेतन, तथा अधिकार के बारे में विस्तृत जानकारी जो निम्नानुसार है।
1. वेतन:– भारत के राष्ट्रपति का प्रति माह वेतन ₹5,00,000 है। यह राशि भारत सरकार की संचित निधि पर भारित होती है। अर्थात् भारत सरकार की एक संचित निधि नामक रुपये रखने का कोष/फंड होता है तथा उन पैसों में से राष्ट्रपति को वेतन मिलता है।
2. राष्ट्रपति के निवास के लिए आवास:- भारत के राष्ट्रपति को आधिकारिक निवास के लिए ‘राष्ट्रपति भवन’ दिया जाता है जो विश्व के सबसे बड़े सरकारी निवासों में से एक है।
3. अन्य भत्ते:– राष्ट्रपति को यात्रा, चिकित्सा, और अन्य आवश्यकताओं के लिए भी विभिन्न प्रकार के भत्ते दिए जाते हैं। इसमें सरकारी गाड़ियां, विमान और सुरक्षा भी शामिल हैं।
4. पेंशन:- पद से सेवानिवृत्त होने के बाद, राष्ट्रपति को आजीवन पेंशन मिलती है, जो कि वर्तमान में ₹1,50,000 प्रति माह है। इसके अलावा, अन्य सुविधाएं भी दी जाती हैं, जैसे व्यक्तिगत सचिव और स्टाफ की सुविधा इत्यादि।
इन सबके अलावा राष्ट्रपति को कई अन्य प्रतिष्ठित सुविधाएं भी प्राप्त होती हैं, जैसे सामाजिक और राजनैतिक आयोजनों में सम्मानित स्थान और विशेष सुरक्षा।
5.राष्ट्रपति का निर्वाचन :- राष्ट्रपति का निर्वाचन जनता प्रत्यक्ष रूप से नहीं होता है बल्कि एक निर्वाचन मंडल के सदस्यों द्वारा उसका निर्वाचन किया जाता है तथा इस मंडल में शामिल लोग निम्नप्रकार हैं-
- संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य
- राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्य
- केन्द्र शासित प्रदेशों जिसमें दिल्ली तथा पुद्दुचेरी विधानसभा के निर्वाचित सदस्य।
नोट :-
- संसद के राज्यसभा सदन में मनोनित 12 सदस्य जो माननीय राष्ट्रपति द्वारा किया जाता हैं वो राष्ट्रपति चुनाव में भाग नहीं लेते हैं।
- राज्य विधानपरिषद के सदस्य जो राष्ट्रपति के चुनाव में भाग नहीं लेते हैं।
- जब कोई सभा विघटित हो गई हो तो उसके सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग नहीं लेते हैं।
राष्ट्रपति के चुनाव की पद्धति :- राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर एकल हस्तांतरित मथ और मतदान द्वारा होता हैं किसी भी उम्मीदवार को राष्ट्रपति के चुनाव में निर्वाचित होने के लिए मतों का एक निश्चित भाग प्राप्त करना अनिवार्य होता है वो निश्चित भाग यह है कि राष्ट्रपति के चुनाव में कुल मतों का 50% मत एक उम्मीदवार को प्राप्त होना अनिवार्य है तभी वह उम्मीदवार विजय माना जाएगा।
नोट :– निर्वाचक मंडल के हर एक सदस्य को एक मतपत्र दिया जाता है है। मतदाता को मतदान करते समय उम्मीदवारों के नाम के आगे अपनी पसंद के अनुसार वरीयता 1,2,3,4,5 आदि अंकित करनी अनिवार्य होती है तथा इस प्रकार मतदाता उम्मीदवारों की उतनी वरीयता दें सकता है जितने उम्मीदवार राष्ट्रपति के चुनाव में प्रत्यक्षी रुप में भाग लेने हैं।
राष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित विवादों की जांच व निर्णय उच्चतम न्यायालय में होते हैं तथा उसका फैसला अंतिम व सर्वोपरी होता है।
नोट :- राष्ट्रपति के चुनाव को इस आधार पर चुनौती नहीं जा सकती कि निर्वाचक मंडल अपूर्ण है यदि सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा किसी व्यक्ति की राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त को अवैध घोषित की जाता है तो सर्वोच्च न्यायालय की घोषणा के पूर्व उसके द्वारा किए गए कार्य अवैध नहीं माने जायेंगे तथा वह प्रभावी बने रहेंगे।
राष्ट्रपति का निर्वाचन प्रत्यक्ष क्यों नहीं :- संविधान सभा के कुछ सदस्यों ने अप्रत्यक्ष चुनाव व्यवस्था की
आलोचना की थी तथा राष्ट्रपति के चुनाव को अलोकतांत्रिक बताया तथा प्रत्यक्ष चुनाव का प्रस्ताव किया। हालांकि संविधान निर्माताओं ने अप्रत्यक्ष चुनाव को निम्नलिखित कारणों से चुना
- राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष होता है जिससे वह नाममात्र कार्यकारी प्रमुख होता है तथा वास्तविक शक्तियां प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रीमंडल में निहित होती है। इसलिए प्रधानमंत्री वास्तविक कार्यकारी प्रमुख होता है यदि राष्ट्रपति का चुनाव प्रत्यक्ष होता तो वो भी वास्तविक कार्यकारी प्रमुख बनने की कोशिश करता जिससे उनके पास में विवाद उत्पन्न होता।
- राष्ट्रपति का प्रत्यक्ष चुनाव अत्यधिक खर्चिला तथा समय व ऊर्जा की बर्बादी होती।
- राष्ट्रपति के चुनाव में संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों के साथ साथ राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों को भी वोट देने का अधिकार प्रदान किया गया ताकि राष्ट्रपति केंद्र के साथ साथ राज्यों का भी समान रूप से प्रतिनिधित्व कर सके।
राष्ट्रपति के पद हेतु योग्यताएं : – राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए व्यक्ति के पास निम्न योग्यताएं होनी अनिवार्य है-
- वह भारत का नागरिक हो
- वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो
- वह लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो
- वह संघ सरकार में अथवा किसी राज्य सरकार में या किसी स्थानीय प्राधिकरण में या सार्वजनिक प्राधिकरण में लाभ के पद पर न हो।
नोट :- वर्तमान में राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति तथा किसी राज्य का राज्यपाल, या संघ या राज्य का मंत्री किसी लाभ के पद दायरे में नहीं माना जाता है इसलिए वह राष्ट्रपति पद के लिए योग्य उम्मीदवार माना जाता है।
- नोट :- भारत के राष्ट्रपति की इन योग्यताओं के अलावा अन्य शर्तें – राष्ट्रपति के चुनाव के लिए नामांकन के लिए उम्मीदवार के पक्ष में कम से कम 50 प्रस्तावक तथा 50 अनुमोदक सदस्य होने चाहिए।
- राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को 15000 रू. जमानत राशि के रूप में जमा करना होता है। अगर कुल डाले गए मतों का 1/6 भाग प्राप्त करना में जो उम्मीदवार असमर्थ रहता है तो यह जमानत राशि जब्त हो जाती है।
- 1997 से पहले पूर्व प्रस्तावकों व अनुमोदकों की संख्या दस-दस दस थी तथा जमानत राशि 2500 रुपये थी लेकिन 1997 में राष्ट्रपति के चुनाव प्रक्रिया में प्रस्तावक तथा अनुमोदक एवं जमानत राशि इत्यादि में बढ़ोतरी के साथ परिवर्तन किया गया था।
राष्ट्रपति द्वारा शपथ अथवा प्रतिज्ञान :- भारत के राष्ट्रपति पद ग्रहण करने से पूर्व शपथ अथवा प्रतिज्ञान लेता है जो इस प्रकार है, मैं;
1. श्रद्धापूर्वक राष्ट्रपति पद का कार्यपालन करुंगा;
2. संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूंगा, और;
3.भारत की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहूंगा।
उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और उसकी अनुपस्थिति में वरिष्ठतम न्यायाधीश द्वारा राष्ट्रपति को पद पद की शपथ दिलाई जाती है।
राष्ट्रपति की पदावधि :- राष्ट्रपति पद की अवधि उसके पद धारण करने की तिथि से पांच वर्ष तक होती है। हालांकि वह अपनी पदावधि में किसी भी समय अपना त्यागपत्र उप राष्ट्रपति को दे सकता है। इसके अतिरिक्त उसे कार्यकाल पूरा होने के पूर्व महाभियोग चलाकर भी हटाया जा सकता है।
जब तक उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण न कर ले राष्ट्रपति अपने पांच वर्ष के कार्यकाल के उपरांत भी पद पर बना रहता है। वह इस पद पर पुनः निर्वाचित हो सकता है।
राष्ट्रपति पर महाभियोग :- राष्ट्रपति पर ‘संविधान का उल्लघंन ‘ के आधार पर महाभियोग चलाकर उसे अपने पद से हटाया जा सकता है।
महाभियोग के आरोप संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है। इन आरोपों पर सदन के एक चौथाई सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए और राष्ट्रपति को 14 दिन का नोटिस देना चाहिए। महाभियोग का प्रस्ताव दो तिहाई बहुमत से पारित होने के पश्चात् यह दूसरे सदन में भेजा जाता है जिससे इन आरोपों की जांच हो सके है। राष्ट्रपति को इसमें उप स्थित होने तथा अपना प्रतिनिधितत्व कराने का अधिकार होता है। यदि दूसरा सदन इन आरोपों को सही पाता है और महाभियोग प्रस्ताव को दो तिहाई बहुमत से पारित करता है तो राष्ट्रपति को प्रस्ताव पारित होने की तिथि से उसके पद से हटाना होगा।
इस प्रकार महाभियोग संसद की एक अर्द्ध न्यायिक प्रक्रिया है। इस संदर्भ में दो बातें ध्यान देने योग्य हैं
1. संसद के दोनों सदनों के नामांकित सदस्य जिन्होंने राष्ट्रपति के चुनाव में भाग नहीं लिया था, इस महाभियोग में ले सकते हैं।
2. राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य तथा दिल्ली व पुद्दुचेरी केंद्रशासित राज्य विधानसभाओं के सदस्य इस महाभियोग प्रस्ताव में भाग नहीं लेते हैं जिन्होंने राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लिया था।
नोट :- भारत मैं अभी तक किसी भी राष्ट्रपति पर महाभियोग नहीं चलाया गया है।
राष्ट्रपति के पद की रिक्तता :- राष्ट्रपति के पद की निम्न कारणों से रिक्त हो सकता है:
- पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा होने पर
- उसके द्वारा त्याग पत्र देने पर
- महाभियोग प्रक्रिया द्वारा उसे पद से हटाने पर
- उसकी मृत्यु होने पर
- इसके अलावा यदि पद ग्रहण करने के लिए योग्य न हो या निर्वाचन अवैध घोषित करने पर।
नोट:- यदि पद रिक्त होने का कारण उसके कार्यकाल का समाप्त होना हो तो उस पद को भरने हेतु उसके कार्यकाल पूर्ण होने से पूर्व नया चुनाव कराना चाहिए। अगर नये राष्ट्रपति के चुनाव में किसी कारण कोई देरी हो तो, वर्तमान राष्ट्रपति अपने पद पर बना रहेगा जब तक कि उसका कोई उतराधिकारी कार्यभार ग्रहण न कर ले। संविधान ने यह उपबंध राष्ट्रपति के न होने पर पद रिक्त होने से शासनांतरण से बचने के लिए किया है।इस स्थिति में उप राष्ट्रपति को यह अवसर नहीं मिलता है कि वह कार्यवाहक राष्ट्रपति की तरह कार्य करें और उसके कर्तव्यों का निर्वहन करें।
नोट:- भारत के राष्ट्रपति को इन सुविधाओं के साथ साथ अनेक प्रकार की शक्तियां प्राप्त हैं जो इस प्रकार हैं –
1. कार्यकारी शाक्तियां
2. विधायी शक्तियां
3.वित्तीय शक्तियां
4. न्यायिक शक्तियां
5. कूटनीतिक शक्तियां
6. सैन्य शक्तियां
7. आपातकालीन शक्तियां
- 1.कार्यकारी शक्तियां :- राष्ट्रपति की कार्यकारी शक्तियां निम्नानुसार हैं –
- भारत सरकार के सभी शासन संबंधी कार्य उसके नाम पर किये जाते हैं।
- वह नियम बना सकता है ताकि उसके नाम पर दिए जाने वाले आदेश और अन्य अनुदेश वैध हो।
- वह प्रधानमंत्री व अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
- वह महान्यायवादी की नियुक्ति करता है तथा उसके वेतन भी राष्ट्रपति ही निर्धारित करता है।
- वह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए एक आयोग की नियुक्ति कर सकता है।
- वह केंद्र – राज्य तथा विभिन्न राज्यों के मध्य सहयोग के लिए एक अंतरराज्यीय परिषद की नियुक्ति कर सकता है।
- वह किसी भी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित कर सकता है उसे अनुसूचित क्षेत्रों व अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन की शक्तियां प्राप्त हैं।
2 विधायी शक्तियां :–
- भारत के राष्ट्रपति को संसद द्वारा पारित बिल पर अपनी सहमति जताने और अंतिम रूप से हस्ताक्षर करने की शक्ति प्राप्त है।
- वह संसद की बैठक बुला सकता है या कुछ समय के लिए स्थगित कर सकता है और लोकसभा को विघटित कर सकता है। वह संसद के संयुक्त अधिवेशन का आह्वान कर सकता है जिसकी अध्यक्षता लोकसभा के अध्यक्ष करेगा।
- वह प्रत्येक ने चुनाव के बाद तथा प्रत्येक वर्ष संसद के प्रथम अधिवेशन को संबोधित करता है।
- वह संसद में कोई लंबित विधेयक के संबंध में संसद को संदेश भेज सकता है।
- यदि लोकसभा में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के पद रिक्त हो तो वह लोकसभा के किसी भी सदस्य को अध्यक्ष के रूप में नामित कर सकता है। इसी प्रकार यदि राज्यसभा के सभापति व उप-सभापति के पद रिक्त हो तो राष्ट्रपति राज्यसभा के किसी भी सदस्य को सदन की अध्यक्षता सौंप सकता है।
- वह साहित्य, विज्ञान,कला,व समाज सेवा से जुड़े सदस्यों में से 12 सदस्यों को राज्यसभा के लिए मनोनीत करता है।
- वह चुनाव आयोग से परामर्श के बाद संसद के सदस्यों की निर्योग्यता से संबंधित प्रश्नों पर फैसला करता है।
- संसद में कुछ विशेष प्रकार के विधेयकों को प्रस्तुत करने के लिए राष्ट्रपति की सिफारिश अथवा अनुमति जरूरी है- जैसे भारत की संचित निधि से खर्च संबंधी विधेयक या राज्यों की सीमा में परिवर्तन अथवा राज्य के निमार्ण के संबंध में विधेयक आदि।
3.वित्तीय शक्तियां :- भारत के राष्ट्रपति को कुछ हद तक धन संबंधी मामलों में शक्ति प्राप्त है उस ही राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियां कहा जाता है।
- धन विधेयक राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से ही संसद में पेश किया जाता है।
- वह केंद्रीय बजट (वार्षिक वित्तीय विवरण) को संसद के समक्ष प्रस्तुत करता।
- किसी भी प्रकार की अनुदान की मांग उसकी अनुमति के बिना नहीं की जा सकती है।
- वह भारत की आकस्मिक निधि से, किसी अदृश्य खर्च हेतु अग्रिम भुगतान की व्यवस्था कर सकता है।
- वह केंद्र व राज्यों के बीच राजस्व के बंटवारे हेतु प्रति 5 वर्ष के लिए एक वित्त आयोग का गठन करता है।
4. न्यायिक शक्तियां :- राष्ट्रपति कीि न्यायिक शक्तियां व कार्य निम्नलिखित हैं –
- वह उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।
- वह सर्वोच्च न्यायालय से किसी विधि या तथ्य पर सलाह ले सकता है परन्तु उच्चतम न्यायालय की यह सलाह राष्ट्रपति पर बाध्यकारी नहीं है।
- वह किसी अपराध के लिए दोषसिद्धि किसी व्यक्ति के लिए दण्डादेश को निलंबित, माफ या परिवर्तन कर सकता है, या दण्ड में क्षमादान, प्राणदंड स्थिगत , राहत और माफी प्रदान कर सकता है।
- (क) उन सभी मामलों में जिनमें सजा सैन्य न्यायालय द्वारा दि गई हो
- (ख) उन सभी मामलों में, जिनमें केन्द्रीय विधियों के विरुद्ध अपराध के लिए सजा दी गई हो।
- (ग) उन सभी मामलों में, जिनमें दंड का स्वरूप प्राण दंड हो।
5. कूटनीतिक शक्तियां :- अन्तर्राष्ट्रीय संधियों व समझौते राष्ट्रपति के नाम पर किए जाते हैं हालांकि इनके लिए संसद की अनुमति अनिवार्य है। वह अन्तर्राष्ट्रीय मंचों व मामलों में भारत का प्रतिनिधित्व करता है और कूटनीतिज्ञों, जैसे राजपूतों व उच्चायुक्तों को भेजता है एवं उनका स्वागत करता है।
6.सैन्य शक्तियां :- वह भारत के सैन्य बलों का सर्वोच्च सेनापति होता है। इस क्षमता में वह थल सेना, जल व वायु सेना के प्रमुखों की नियुक्ति करता है। वह युद्ध या इसकी समाप्ति की घोषणा करता है किंतु यह संसद की अनुमति के अनुसार होता है।
7. आपातकालीन शक्तियां :- उपरोक्त साधारण शक्तियां के अलावा संविधान ने राष्ट्रपति को निम्नलिखित तीन परिस्थितियों में आपातकालीन शक्तियां प्रदान की है।
- राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352) – जब देश में युद्ध, शस्त्र विद्रोह या बाहरी आक्रमण के आधार पर राष्ट्रपति देश में या देश किसी एक छोटे से भाग पर राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं। राष्ट्रपति को यह शक्ति संविधान द्वारा प्रदत्त है।
- राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356 व 365) – सम्पूर्ण भारत या भारत के एक या एक से अधिक राज्यों में राष्ट्रपति शासन तब लगाया जा सकता है जब भारत सरकार या राज्य सरकार संविधान के अनुसार सरकार नहीं चल रही हो।
- वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360) – जब देश में वित्तीय संकंट उत्पन्न हो जाता है तब देश के राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करें तथा भारत सरकार या राज्य सरकार के कर्मचारियों, राजनेता तथा सुप्रीम और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों के वेतन में भी कटौती की जा सकती है।
राष्ट्रपति की वीटों शक्ति :- संसद द्वारा पारित कोई भी विधेयक तभी अधिनियम बन सकता जब राष्ट्रपति उस पर अपनी सहमति प्रदान करता है जब ऐसा विधेयक राष्ट्रपति की सहमति के लिए भेजा जाता है तो उस संबंध में राष्ट्रपति के पास तीन विकल्प होते हैं (अनुच्छेद 111 के अनुसार)
- वह विधेयक पर अपनी सहमति दे सकता है।
या
- विधेयक पर अपनी सहमति सुरक्षित रख सकता है
या
- वह विधेयक (अगर विधेयक धन विधेयक नहीं है) को संसद के पुनर्विचार हेतु लौटा सकता है। हालांकि अगर संसद इस विधेयक को पुनः बिना संसोधन के अथवा संशोधन करके, राष्ट्रपति के सामने प्रस्तुत करें तो राष्ट्रपति को उस पर अपनी सहमति देनी ही होगी।
इस प्रकार संसद द्वारा पारित विधेयकों के संबंध में राष्ट्रपति के पास वीटो शक्ति होती है जो अपने विवेक के आधार पर वह प्रयोग करता है।
राष्ट्रपति के पास प्रमुख रूप से 4 प्रकार की वीटो शक्ति प्राप्त है –1.आत्यंतिक वीटो – संसद द्वारा पारित विधेयक के संबंध में वह शक्ति जिसके माध्यम से राष्ट्रपति विधेयक पर सहमति न देकर अपने पास सुरक्षित रख लेता है।
2.निलंबनकारी वीटो – संसद द्वारा पारित विधेयक जो सहमति के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है तब राष्ट्रपति उस विधेयक पर सहमति न देकर उसमें कुछ बदलाव हेतु संसद को वापस भेज देता है तो इस प्रकार की राष्ट्रपति की शक्ति निलंबनकारी वीटों कहलाती है।
3.पाॉकेट वीटों – संसद द्वारा पारित विधेयक, जब सहमति हेतु राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है तब राष्ट्रपति उस विधेयक पर सहमति न देकर, विधेयक को अपनी जेब में रख लेता है, तो विधेयक के संबंध में राष्ट्रपति की इस प्रकार की शक्ति पॉकेट वीटो शक्ति कहलाती है।
4. राज्य विधायिका पर राष्ट्रपति का वीटो – राज्य विधायिकाओं के संबंध में राष्ट्रपति के पास भी वीटो शक्तियां होती है।
भारत में किसी भी राज्य की विधायिका द्वारा पारित विधेयक सहमति के लिए (विशेष विधेयक) उस राज्य के राज्यपाल के पास भेजा जाता है तब राज्यपाल – उस विधेयक पर निम्न एक्शन ले सकता है –
- वह अपने विधेयक पर सहमति दे सकता है
या
- वह विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रख सकता है।
या
- वह विधेयक (धन विधेयक न हो) को राज्य विधायिका के पुनर्विचार हेतु लौटा सकता है।
या
- वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचाराधीन हेतु आरक्षित रख सकता है।
जब कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित किया जाता है तो राष्ट्रपति के पास तीन विकल्प (अनुच्छेद 201) होते हैं –
- वह विधेयक पर अपनी स्वीकृति दे सकता है, अथवा
- वह विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रख सकता है, अथवा
- वह राज्यपाल को निर्देश दे सकता है कि वह विधेयक (यदि धन विधेयक न हो) को राज्य विधायिका के पास पुनर्विचार हेतु लौटा दे।
- राष्ट्रपति के कार्य, शक्तियां, वेतन, तथा अधिकार के बारे में बताई गई जानकारी आपको कैसी लगी,काॅमेंट बाॅक्स में जरूर बताएं।