स्थानीय स्वशासन के बारे में विस्तृत जानकारी
स्थानीय स्वशासन के अन्तर्गत लोगों को निचले स्तर पर शासन में भागीदारी प्रदान कर लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण को सुनिश्चित किया जाता है तथा आम जनता को अपनी समस्याओं के समाधान के लिए समर्थ बनाया जाता है।
- लाॅर्ड रिपन को स्थानीय स्वशासन का जनक माना जाता है क्योंकि इन्हीं के द्वारा सर्वप्रथम 1882 में स्थानीय स्वशासन को लेकर प्रस्ताव पारित किया गया जिसे स्थानीय स्वशासन के मैग्नाकार्टा की संज्ञा दी जाती है।
- भारत शासन अधिनियम के अन्तर्गत सर्वप्रथम स्थानीय स्वशासन को मान्यता प्रदान की गई तथा वर्तमान भारतीय संविधान में स्थापित स्वशासन राज्य सूची का विषय है।
स्थानीय स्वशासन के स्तर
- पंचायती राज
- नगरीय शासन
पंचायती राज – भारतीय संविधान के भाग 4 में नीति निदेशक तत्वों के अंतर्गत अनुच्छेद 40 में राज्य को ग्राम पंचायत के गठन के लिए दिशा निर्देश जारी किया गया तथा यह उपबंध किया गया कि राज्य उन्हें अधिक से अधिक शक्तियां एवं संसाधन प्राप्त करें ताकि पंचायतों स्वायत्त शासन की इकाई के रूप में कार्य कर सके।
ग्रामीण स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के गठन तथा उसमें जनता की सहभागिता को सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार के द्वारा 2 अक्टूबर 1952 को सामुदायिक विकास कार्यक्रम की शुरुआत की गई परन्तु तत्कालीन नौकरशाही के द्वारा इसमें सक्रिय सहभागिता प्रदर्शित नहीं की गई परिणामस्वरूप यह कार्यक्रम असफल हो गया तथा सामुदायिक विकास कार्यक्रम की असफलता की समीक्षा के लिए तथा पंचायती राज संस्थाओं का गठन कर उसमें जनता की भागीदारी को बढ़ाने के लिए 1957 में बलवंत राय मेहता समिति का गठन किया गया।
1.बलवंत राय मेहता समिति-(1957)
बलवंत राय मेहता समिति ने भारत में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की स्थापना के लिए तीन स्तर पर पंचायती राज संस्थाओं के गठन की अनुशंसा की जो तीन स्तर निम्नानुसार है-
- ग्राम स्तर पर – ग्राम पंचायत
- खण्ड (ब्लॉक) स्तर पर – पंचायत समिति
- जिला स्तर पर – जिला परिषद
बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशों को लागू करते हुए 2 अक्टूबर 1959 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के द्वारा राजस्थान के नागौर जिले के बगदरी गांव में पंचायती राज का उद्घाटन किया गया तथा इसी के साथ राजस्थान देश का प्रथम राज्य बन्ना जहां पर पंचायती राज लागू किया गया एवं इसके पश्चात 11 अक्टूबर को आंध्र प्रदेश में पंचायती राज लागू हुआ अर्थात आंध्रप्रदेश पंचायती राज व्यवस्था लागू करने वाला भारत का दूसरा राज्य बना।
2.अशोक मेहता समिति -(1977) इसके द्वारा पंचायती राज संस्थाओं के गठन से संबंधित अनुशंसाएं
- अशोक मेहता समिति ने पंचायती राज संस्थाओं को दो स्तर पर गठन करने की अनुशंसा की गई –
- जिला स्तर पर – जिला परिषद
- (गांव+ब्लॉक ) स्तर पर – मण्डल पंचायत
इन्होंने जिला परिषद पर विशेष बल दिया तथा पंचायत राज संस्थाओं में राजनीतिक दलों की भागीदारी की अनुशंसा की गई
इनके द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजातियों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण प्रदान करने तथा राज्य मंत्रिपरिषद में पंचायती राज संबंधी प्रावधानों की देखभाल के लिए मंत्री पद के गठन की अनुशंसा की गई।
1985 में योजना आयोग के द्वारा GVK राव समिति का गठन किया गया जिसने चार स्तरों पर पंचायती राज संस्थाओं के गठन की अनुशंसा की।
- राज्य परिषद
- जिला परिषद
- मण्डल पंचायत
- ग्राम पंचायत
इनके द्वारा पंचायती राज संस्थाओं के कार्यकाल को पांच वर्ष से बढ़ाकर आठ वर्ष करने की सिफारिश की गई।
लक्ष्मीमल सिंघवी समिति (1986 ) की अनुशंसाएं
- पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता प्रदान करना
- पंचायती राज संस्थाओं को शासन का तीसरा स्तर घोषित करना
- पंचायतों में नियमित चुनाव करवाना
- ग्राम सभा की स्थापना करवाना
- ग्राम न्यायालयों की स्थापना करने अर्थात पंचायतों का न्यायिक शक्तियां प्रदान करना।
- महिलाओं को पंचायती राज संस्थाओं में आरक्षण प्रदान करने की अनुशंसा की गई।
थूगन समिति तथा गाडगिल समिति (1988) इन समितियों के द्वारा भी पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता प्रदान करने एवं उन्हें और अधिक वित्तीय संसाधन प्रदान करने की अनुशंसा की गई।
पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता प्रदान करने के लिए राजीव गांधी सरकार के द्वारा 64 वें संविधान संशोधन विधेयक संसद में लाया गया,
विधेयक लोकसभा से पारित हो गया परन्तु राज्यसभा से पारित नहीं हो सका इसलिए विधेयक समाप्त हो गया।
73 वां संविधान संशोधन अधिनियम 1992
इस संविधान संशोधन के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई तथा राज्यों को पंचायती राज से संबंधित उपबंधों को लागू करने के लिए बाध्यकारी बनाया गया।
24 अप्रैल 1993 को भारत में पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई इसलिए 24 अप्रैल को प्रति वर्ष पंचायती राज दिवस के रूप में मनाया जाता है।
पंचायती राज संस्थाओं से संबंधित प्रावधान संविधान के भाग 9, अनुसूची 11वीं , अनुच्छेद 243A-243O तक , विषय 29 है जो भारतीय संविधान में वर्णित है इसलिए पंचायती राज व्यवस्था संवैधानिक संस्था है।
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