bhagat Singh jayanti प्रति वर्ष 28 सितम्बर को मनाई जाती है। bhagat Singh jayanti पर हम उन्हें याद करते और सत सत नमन भी करते हैं। bhagat Singh jayanti भारतियों के लिए सीखने का एक संदेश है एक क्रांतिकारी और देशहित में काम करने वाले देश के लोकप्रिय वीर माने जाते है। तथा इनकी सोच इस प्रकार की थी कि मैं रहू या नहीं रहूं लेकिन मेरा देश आजाद रहना चाहिए।
भगत सिंह का जन्म 26 सितंबर, 1907 को भागनवाला के रूप में हुआ था तथा इनका पालन-पोषण पंजाब के दोआब क्षेत्र में स्थित जालंधर ज़िले के संधू जाट किसान परिवार में हुआ था।
वह एक ऐसी पीढ़ी से संबंध रखते थे जो भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दो निर्णायक चरणों में हस्तक्षेप करती थी- पहला, लाल-बाल-पाल के ‘चरमपंथ’ का चरण और दूसरा, अहिंसक सामूहिक कार्रवाई का गांधीवादी चरण।
भगत सिंह की स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका :-
वर्ष 1923 में भगत सिंह ने नेशनल कॉलेज, लाहौर में प्रवेश लिया था, जिसकी स्थापना लाला लाजपत राय एवं भाई परमानंद ने मिलकर की थी तथा प्रबंधन भी उन्हीं के द्वारा किया गया था।
शिक्षा के क्षेत्र में स्वदेशी का विचार लाने के उद्देश्य से इस कॉलेज को सरकार द्वारा चलाए जा रहे संस्थानों के विकल्प के रूप में स्थापित किया गया था।
वर्ष 1924 में वह कानपुर में सचिंद्रनाथ सान्याल द्वारा एक साल पहले शुरू किये गए हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य बने। एसोसिएशन के मुख्य आयोजक चंद्रशेखर आज़ाद थे और भगत सिंह उनके बहुत करीबी बन गए थे।
हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य के रूप में भगत सिंह ने “फिलॉसफी ऑफ द बॉम्ब” को गंभीरता से लेना शुरू किया था।
फिलॉसफी ऑफ द बॉम्ब नामक प्रसिद्ध लेख क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा ने लिखा था। उन्होंने फिलॉसफी ऑफ द बॉम्ब सहित तीन महत्त्वपूर्ण राजनीतिक दस्तावेज़ लिखे; अन्य दो दस्तावेज़ नौजवान सभा का घोषणापत्र और HSRA का घोषणापत्र थे।
उन्होंने सशस्त्र क्रांति को इंग्लैंड देश के खिलाफ एक मात्र हथियार माना।
वर्ष 1925 में भगत सिंह लाहौर लौट आए और अगले एक वर्ष के भीतर उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर “नौजवान भारत सभा” नामक एक उग्रवादी युवा संगठन का गठन किया।
अप्रैल 1926 में भगत सिंह ने सोहन सिंह जोश के साथ संपर्क स्थापित किया तथा उनके साथ मिलकर “श्रमिक और किसान पार्टी” की स्थापना की, जिसने पंजाबी भाषा में एक मासिक पत्रिका कीर्ति का प्रकाशन भी किया।
वर्ष भर भगत सिंह ने सोहन सिंह जोश के साथ मिलकर कार्य किया तथा वह कीर्ति के संपादक मंडल में शामिल हो गए।
वर्ष 1927 में काकोरी कांड (काकोरी केस)में संलिप्त होने के आरोप में उन्हें पहली बार गिरफ्तार किया गया तथा अपने छद्म नाम ‘विद्रोही’ से लिखे गए लेख हेतु आरोपी माना गया।
वर्ष 1928 में भगत सिंह ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन (HSRA) कर दिया।
वर्ष 1930 में चंद्रशेखर आज़ाद के देहांत के साथ ही HSRA भी समाप्त हो गया।
पंजाब में HSRA का स्थान नौजवान भारत सभा ने ले लिया था।
लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिये भगत सिंह और उनके साथियों ने पुलिस अधीक्षक जेम्स ए स्कॉट की हत्या की साजिश रची। हालाँकि क्रांतिकारियों ने गलती से जे.पी. सॉन्डर्स को मार डाला। इस घटना को लाहौर षड्यंत्र केस (1929) के नाम से जाना जाता है।
वर्ष 1928 में लाला लाजपत राय ने साइमन कमीशन के भारत आगमन के विरोध में निकाले गए एक जुलूस का नेतृत्व किया। इस जुलूस में शामिल लोगों पर पुलिस ने बर्बरता से लाठीचार्ज किया, जिसमें लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए और बाद में उनकी मृत्यु भी हो गई।
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त इन दोनों के द्वारा दमनकारी विधेयकों- सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक और व्यापार विवाद विधेयक के पास होने के विरोध में 8 अप्रैल, 1929 को केंद्रीय विधानसभा में बम फेंका।
उनके पत्रकों में किये गए उल्लेख के अनुसार, उनके द्वारा बम फेंके जाने का उद्देश्य, किसी को मारना नहीं था बल्कि बधिर हो चुकी ब्रिटिश सरकार को उसके द्वारा निर्दयतापूर्वक किये जा रहे शोषण के बारे में सचेत करना था।
इस घटना के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त दोनों ने आत्मसमर्पण कर दिया तथा मुकदमे का सामना किया ताकि अपने उद्देश्यों को जन-जन तक पहुँचा सकें। इस घटना के लिये उन्हें आजीवन कारावास का दण्ड दिया गया थी।
भगत सिंह को लाहौर षड्यंत्र कैसी में में जे.पी. सॉन्डर्स की हत्या करने एवं बम के निर्माण का भी दोषी पाया गया तथा इस मामले में 23 मार्च, 1931 को सुखदेव एवं राजगुरु के साथ लाहौर में उन्हें फाँसी दे दी गई।
हर साल 23 मार्च को स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को श्रद्धांजलि देने हेतु शहीद दिवस मनाया जाता है।
भगतसिंह एक गर्मदल से संबंधित क्रांतिकारी नेता माना जाता है और उन्होंने 23 साल की उम्र में देश हित में काम करते हुए फांसी की सजा से अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी। लेकिन भले ही भगतसिंह ने 23 वर्ष की आयु में अपनी आत्म लीला समाप्त कर दी हो परंतु वह आज भी अमर है और अमर रहेगा।
भगतसिंह के बारे में आपके क्या विचार है काॅमेंट बाॅक्स में जरूर बताएं।
धन्यवाद।