fundamental rights in india के बारे में विस्तृत जानकारी निम्नानुसार है।
भारतीय संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12-35 तक) में मूल अधिकारों का वर्णन है।
संविधान के भाग III में ‘भारत का मैग्नाकार्टा’ का वर्णन किया गया है।
‘मैग्नाकार्टा’ अधिकार का वह दस्तावेज है, जिसे इंग्लैंड के किंग जॉन द्वारा 1215 में सामंतों के दबाव में जारी किया गया था। यह नागरिकों के मूल सिद्धांतों से संबंधित पहला लिखित रूप में दस्तावेज़ था।
मूल अधिकार: मूलतः भारतीय सविधान में कुल 7 मूल अधिकार थे लेकिन हाल ही में केवल 6 मूल अधिकार ही प्रदत है –
1.समता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18)
2.स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22)
3.शोषण के विरोध का अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24)
4.धर्म की स्वतंत्रता संबधी अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28)
5.सांस्कृतिक और धार्मिक अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30)
6.संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)
नोट:- भारतीय संविधान में उल्लेखित सातवां मूल अधिकार ‘ संपति का अधिकार ‘ था जिसे 44वें संविधान संशोधन बिल के तहत हटा दिया गया और इसे मूल अधिकार से विधिक अधिकार में बदल दिया।
मूल अधिकारों की विशेषताएं:-
मूल अधिकारों को संविधान में निम्नलिखित विशेषताओं के साथ प्रदान किया गया है –
1. इन मूल अधिकारों में से कुछ सिर्फ नागरिकों के लिए उपलब्ध है, जबकि कुछ अन्य सभी व्यक्तियों के लिए उपलब्ध हैं चाहे वे नागरिक, विदेशी लोग या कानूनी व्यक्ति, जैसे-परिषद् एवं कंपनियां हों।
2. ये असीमित नहीं हैं. लेकिन वाद योग्य होते हैं। राज्य द्वारा उन पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाया जा सकता है। हालांकि उनका कारण उचित है या नहीं जिसका निर्णय न्यायालय अपने स्वविवेक से करती है। इस तरह ये व्यक्तिगत अधिकारों एवं पूरे समाज के बीच संतुलन कायम करते हैं। यह संतुलन व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं सामाजिक नियंत्रण के बीच होता है।
3. वे सभी सरकार के एक पक्षीय निर्णय के बिल्कुल विरुद्ध हैं हालांकि उनमें से कुछ निजी व्यक्तियों के खिलाफ भी उपलब्ध करवाया जा सकता हैं।
4. इनमें से कुछ नकारात्मक विशेषताओं वाले मूल अधिकार भी हैं, जैसे- राज्य के प्राधिकार को सीमित करने से संबंधित हैं; जबकि कुछ सकारात्मक होते हैं, जैसे:- व्यक्तियों के लिए विशेष सुविधाओं का प्रावधान।
5. ये न्यायोचित हैं। ये व्यक्तियों को इनका उल्लंघन हो जाने पर न्यायालय जाने की अनुमति प्रदान करते हैं।
. इन्हें उच्चतम न्यायालय द्वारा गारंटी व सुरक्षा उपलब्ध करवाते हैं। हालांकि पीड़ित व्यक्ति सीधे उच्चतम न्यायालय जा भी सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि केवल उच्च न्यायालय को खिलाफ ही यहां अपील को लेकर जाया जाएं।
मूल अधिकारों को लेकर पीड़ित व्यक्ति किसी भी अधीनस्थ न्यायालय तथा उच्च न्यायालय में जाए बगैर सीधे ही उच्चतम न्यायालय की शरण ले सकता है।
7. ये हमेशा स्थायी नहीं है। संसद इनमें कटौती या कमी कर सकती है इसके लिए संसद को संशोधन अधिनियम लाना होगा सीधे ही साधारण विधेयक द्वारा नहीं की जा सकेगी । यह सब संविधान के मूल ढांचे को प्रभावित किए बगैर संभव हो पाएगा।
9. अनुच्छेद 31 क (संपत्ति आदि के कानून की रक्षा) द्वारा इनके कार्यान्वयन की सीमाएं हैं। अनुच्छेद 31ख (कुछ अधिनियमों और विनियमों का विधि मान्यीकरण प्रयों सूची में शामिल किया गया) एवं अनुच्छेद 31ग (कुछ कुछ निदेशक तत्वों को प्रभावी करने वाली विधियों की व्यावृत्ति) आदि।
10. सशस्त्र बलों, अर्द्ध-सैनिक बलों, पुलिस बलों, गुप्तचर संस्थाओं और ऐसी ही सेवाओं से संबंधित सेवाओं के क्रियान्वयन पर संसद प्रतिबंध आरोपित कर सकती है (अनुच्छेद 33)।
11. ऐसे इलाकों में भी इनका क्रियान्वयन रोका जा सकता है. जहां फौजी कानून लागू हो गया हो। फौजी कानून का मतलब ‘सैन्य शासन’ से है, जो असामान्य परिस्थितियों में भी लगाया जाता है (अनुच्छेद 34)। यह राष्ट्रीय आपातकाल से भिन्न है।
12. इनमें से ज्यादातर अधिकार स्वयं प्रवर्तित हैं, जबकि कुछ को कानून की मदद से प्रभावी बनाया जाता है। ऐसा कानून देश की एकता के लिए संसद द्वारा बनाया जाता है, न कि विधान मंडल द्वारा ताकि जिससे संपूर्ण देश में एकरूपता बनी रहे (अनुच्छेद 35)।
fundamental rights in india के बारे में जानकारी आपको कैसी लगी हमें काॅमेंट बाक्स में जरूर बताएं।
धन्यवाद।
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